लेखनी भी बहुत अनूठी एवं अनुपमेय होती है, यह केवल विचाराभिव्यक्ति ही नहीं एक सोच को सफलतापूर्वक पाठकों के सामने रखने का एक सशक्त माध्यम है। कहा गया है कि "कलम तलवार से अधिक बलवान है", इस वाक्य के शाब्दिक अर्थ से परे इसका विशेष अर्थ भी है जो एक रचना और रचनाकार के बल एवं सामर्थ्य की ओर इंगित करता है। मैं वीणापाणि माँ सरस्वती को कोटि-कोटि नमन करता हूँ कि उन्होंने अपने इस तुच्छ दास को लेखनी की कलात्मकता का ज्ञान एवं रचनात्मकता का आशीर्वाद दिया।
लोग अक्सर यह प्रश्न करते हैं कि हिंदी भाषा एवं साहित्य से सीधे तौर पर न जुड़े होते हुए भी मुझे हिंदी से इतना लगाव क्यों है। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हिंदी मेरी मातृभाषा है जिसे बोलने एवं इस्तेमाल करने में मैं गौरव का अनुभव करता हूँ। विद्यालय के दिनों में मुझे हिंदी एवं अंग्रेजी दोनों भाषाओं के काव्य खण्डों से विशेष लगाव था जिसका श्रेय मेरी हिंदी शिक्षिका श्रीमती शशि भाटिया एवं अंग्रेजी शिक्षिका श्रीमती सरोज बहुगुणा को जाता है जिन्होंने साहित्य से मेरा परिचय करवाया। केंद्रीय विद्यालय रायवाला में रहते हुए जो अभिव्यक्ति की कुशलता मैंने अर्जित की उसका श्रेय मेरे सभी शिक्षकों को जाता है। उच्च आदर्शों से मेरा परिचय करवाने वाली विद्यालय की तत्कालीन प्राचार्या श्रीमती रजनी एच उप्पल जी जिन्हें लौह महिला कहना अतिश्योक्ति न होगी, उनका मैं अपने चारित्रिक विकास में विशेष योगदान मानता हूँ।
देहरादून प्रौद्योगिकी संस्थान में अभियांत्रिकी में दाखिले के पश्चात क्लिकराती लिटराती क्लब ने साहित्य के लिए मेरी इच्छा और लिखने हेतु सामर्थ्य में वृद्धि की। मुझे याद है जब मेरे द्वारा लिखे गए लेख पर मेरे अग्रज अभिषेक अग्रवाल जी ने मुझसे कहा था "इतना अच्छा लेख लिखते हो, कविता लिखने का प्रयास क्यों नहीं करते? मुझे विश्वास है तुम बहुत अच्छी कविता लिख सकते हो"। प्रेरणा जीवन में एक ऐसी ज्योति होती है जो आपको असंभव को भी संभव करने का बल देती है। अभिषेक जी के शब्दों से प्रेरणा पाकर ही मैंने अपनी पहली "असमंजस" लिखी जिसे सभी द्वारा सराहा गया जिसके फलस्वरूप मुझे आगे लिखने की प्रेरणा एवं साहस प्राप्त हुआ।
मेरा परिवार मेरे लिए अनंत प्रेरणा का स्रोत है, माताजी श्रीमती गुड्डी तड़ियाल एवं पिताजी श्री गुलाब सिंह तड़ियाल ने मुझे हमेशा ही आगे बढ़ने हेतु प्रेरित किया है। मेरे किसी भी प्रयास पर आज तक मुझे माताजी एवं पिताजी की ओर से एक ही उत्तर मिला है "ज़रूर करो"। चाहे घर के हालात कैसे भी रहे हों सम्पूर्ण परिवार को मैंने हमेशा अपने साथ पाया है। मेरी बड़ी बहनें नंदिनी, ऋचा, आशा और कुमुद मेरे व्यक्तित्व के आधार स्तम्भों में से एक हैं। इन सभी के होते हुए प्रेरणा, ऊर्जा और साहस की कमी का मैंने कभी अनुभव नहीं किया। इन सभी के बीच मैं अपने कॉलेज के शिक्षकों एवं अग्रजों का हमेशा आभारी रहूँगा जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को निखारने में अपना योगदान दिया।
किसी भी व्यक्ति की सफलता केवल उसके अकेले की नहीं होती अपितु उन सभी लोगों की होती है जिन्होंने उसे यहाँ तक पहुँचाने में अपना योगदान दिया है। मैं उन सभी लोगों को शत-शत नमन करता हूँ जिन्होंने प्रत्यक्ष का अप्रत्यक्ष रूप से मेरे विकास और निर्माण में आपका योगदान दिया।